अंतस्थ व्यंजन कितने होते हैं? यह सवाल भाषा और व्याकरण के प्रति रुचि रखने वाले लोगों के मन में उठता है, और इसका महत्वपूर्ण योगदान होता है भाषा के संरचना और व्याकरण के क्षेत्र में।
अंतस्थ व्यंजन वर्णमाला के व्यंजनों का एक महत्वपूर्ण भाग होते हैं, और इनका अध्ययन भाषा विज्ञान के प्रति रुचि रखने वालों के लिए रोचक हो सकता है।
अंतस्थ व्यंजन का मुख्य विशेषता यह है कि इन्हें उच्चारित करते समय जीभ, तालु, दांत और होंठों के परस्पर संपर्क के साथ उच्चारित किया जाता है।
इन व्यंजनों के उच्चारण के समय सांस की गति अन्य व्यंजनों के उच्चारण की तुलना में कम होती है, और इसलिए इन्हें “स्पर्शहीन वर्ण” भी कहा जाता है। इसलिए, अंतस्थ व्यंजन का उच्चारण स्वर की भांति नहीं होता, और इसलिए इन्हें “अर्ध स्वर” भी कहा जाता है।
इस लेख में, हम अंतस्थ व्यंजनों के परिभाषा, प्रकार, और उदाहरणों के साथ इसके महत्वपूर्ण पहलुओं को जानेंगे, ताकि आपको इस व्याकरणिक आदान-प्रदान को समझने में मदद मिल सके।
आप को उच्चारण प्रयत्न के आधार पर व्यंजन प्रकार से परिचित कराना चाहता हूं. उच्चारण प्रयत्न के आधार पर व्यंजन को 8 भागों में बांटा गया है.
- स्पर्शी (16) – क, ख, ग, घ, ट, ठ, ड, ढ, त, थ, द, ध, प, फ, ब, भ.
- संघर्षी (4) – श, ष, स, ह.
- स्पर्श-संघर्षी (4) – च, छ, ज, झ.
- नासिक्य / अनुनासिक (5) – ङ, ञ, ण, न, म.
- पार्श्विक (1) – ल.
- प्रकंपी / लुंठित (1) – ऱ
- उत्क्षिप्त (2) – ड, ढ.
- संघर्षहीन / अंतस्थ (4) – य’, ‘र’, ‘ल’, और ‘व’
☛ अंतस्थ व्यंजन की कुल संख्या 4 होती है – य’, ‘र’, ‘ल’, और ‘व’
संघर्षहीन व्यंजन की परिभाषा
अंतस्थ व्यंजन किसे कहते हैं? अंतस्थ व्यंजन की परिभाषा: अंतस्थ व्यंजन का उच्चारण जीभ, तालु, दांत, और होठों के परस्पर सटने के कारण होता है, जिसके दौरान सांस की गति अन्य व्यंजनों के उच्चारण के समय की तुलना में कम होती है।
इस प्रकार के व्यंजनों को अर्ध स्वर वर्ण भी कहा जाता है, क्योंकि इनके उच्चारण के समय स्वर की भांति ज्यादा घर्षण नहीं होता।
- इस वर्णमाला में ‘य’, ‘र’, ‘ल’, और ‘व’ अंतस्थ व्यंजन के उदाहरण हैं।
अंतस्थ शब्द का अर्थ अंदर का, बीच में स्थित, भीतर रहने वाला, भीतरी, अंत:स्थ, मध्य में रहने वाला इत्यादि होता है। आपको इन व्यंजनों का उच्चारण करते समय जीभ, तालु, दांत, और होठों के सटने का ध्यान रखना होता है।
Conclusion Point
अंत:स्थ व्यंजन वे व्यंजन होते हैं जिनका उच्चारण जीभ, तालु, दांत, और होंठों के परस्पर संपर्क के कारण होता है। इन व्यंजनों के उच्चारण के समय सांस की गति अन्य व्यंजनों के उच्चारण की तुलना में कम होती है। इन व्यंजनों को संघर्षहीन वर्ण भी कहा जाता है।
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